जय चाला जय धरम ।
अनमोल कड़ियाँ
लेखक का उद्देश्य :- अनमोल कड़ियां भाग-१ नामक पुस्तक लिखने का मेरा दो उद्देश्य है। प्रथम तो राजी-पडहा के द्वारा कुडुख भाषा में अद्दिधरम पोथा ( ग्रन्थ ) लिखा जा
रहा है जिसको समझने में आप सबो को कठिनाईयां न हो । इस पुस्तक के प्रथम भाग
में मैने अदिधरम की मौलिक बातों को बहत ही संक्षेप में लिखा हूँ ताकि ग्रन्थ प्रकाशित
होने के पहले ही आप सब अद्दिधरम के बारे कुछ बहुत जानकारी प्राप्त कर लेगे जिससे
आप सम्पुर्ण ग्रन्थ की बातो और मर्मो को सहज स्वाभाव से समझ सकेगें ।
द्वितीय इस पुस्तक के दसरे भाग में भजन ,गीत,कविता आदि है । राजी-पडहा।
की ओर से समाज के लोगों को निर्देश है कि सभी कोई कुडुख भाषा में ही
भजन गीत,कविता कहानी आदि लिख कर और राजी पडहा के पास भेज दें ताकि।
राजी-पडहा प्रकाशित कर सकें।
हमारी गीते अधिकतर सदान भाषा में है जो हमारा दुर्भाग्य ही है । अता :
आप सबों से निवेदन है कि आप सदान भाषा वाली गीतों को कुइख भाषा में उलथा करें।
इसका अर्थ यह नहीं कि सदान भाषा वाली गीतों को गावें ही नहीं और न जाने । समय।
और सही जगह में सदान गीतों को अवश्य गावें किसी को मना नहीं है किन्तु अपनी
भाषा और संस्कृति को समृद्धशैली बनाने के लिए हम सबों को अत्याधिक प्रयत्नशील
होना आवश्यक है।
इस पुस्तक को पढकर आप निश्चय ही कहेगें कि एक और राजी पडहा ।
देवान की भिखराम भगत कुडुख भाषा में ही गाने और लिखने के लिये कहते है फिर
इस पुस्तक में अपने ही सदान भाषा वाली गीतों को क्यो व्यवहार किया है आप लोगों
का यह बात अवश्य सत्य है पर मैं सदान गीतो का विषय वस्तु को स्पष्ट करने के ।
लिए ही उदाहरण के रूप में लाया हूँ।
- मैं पूर्ण आशा करता हूँ कि आप सभो कुडुख भाषा में भजन,
गीत नाटक कविता कहानी आदि लिखकर राजी - पड़हा के पास भेजें जो राजी-पड़हा।
की अनमोल कड़ियाँ ही होगी ।
राजी पड़हा की ओर से आप सबों को सख्त निर्देश है कि आप सब नीचे
लिखे नियमों का अवश्य पालन करें ।
(१) हम परानी-नई अच्छी गीतों का संग्रह हर हालत में कर के और राजी-पडहा के नाम ।
प्रेषित करें।
(२)बुरी गीतों को कभी भी नहीं गावें । हमें नई गीतो को बचाना आवश्यक है पर असे
भावों से युत्त हों।
(३) गाने और नृत्य के समय दुसरे जाति के संगीत और नृत्य शैली से हमें परे रहना
अति आवश्यक है । बाजा और गीतों की ताल और लय में सामंजस्य होना अति ।
आवश्यक है । नृत्य में मांदर नगाड़ा के साथ-साथ घट,ढ़ेचका होना अति
आवश्यक है।
कुडुख समाज में नर-नरियों का सामूहिक रूप से नृत्य होती है किन्तु लड़कियों का।
कत्तार अलग और लड़कों का दल अलग परम्परा के अनुसार होना अति आवश्रक
है । लड़कियों के कत्तार में लड़कों का जोराना सख्त वर्जित है । दोनों दलों का भेष
-भूषा अलग -अलग पर एक समान होना चाहिए । ।
कुडुख जाति को सख मना है कि पड़हा सस्था के बिना आदेश के कहीं भी बाहर।
नृत्य करने नहीं जाना है । क्योंकि जहाँ तहाँ नृत्य करके कुडुख नृत्य को तमाशमीन
बनाकर मटियामेट नहीं करें।
गाँव-घर अखड़ा में १० बजे रात से अधिक रात तक नृत्य नहीं करें । किन्तु परब
-त्योहार में रात भर नृत्य कर सकते है । किसी भी रात या परब - त्योहार में रात
को एक गाँव से दूसरे गाँव नृत्य करने नहीं जाएँ ।
(७) राजी - पड़हा के तरफ से सख्ख अदेश है कि किसी भी घर दरवाजा पर या राजनैतिक
व्यत्तियों के स्वागत करने ,नृत्य दल नृत्य करने नहीं जाएगी । इसी प्रकार अच्छाई
-बुराई को जानकर ही नृत्य करें।
खास करके कुडुख जाति की संगीत और इतिहास ही अनमोल कड़ियाँ है ।
यही तो हमारे पूर्वजों ने हमारे लिये पुँजी के रूप में दिया है जिसको रक्षा और
विकास करना हमारा फर्ज है।
आदिवासियों और सरना को मानने वाले तमाम जाति बन्धुओं के बीच १-राजी-
पडहा और २ - सरना संघर्ष अखड़ा नामक दो संस्थाएँ विद्धत गति से काम कर
रही है । १- राजी पड़हा धार्मिक और सामाजिक पर ही काम करेगी जब कि सरना।
संघर्ष अखड़ा के तमाम मानने वालों के समस्याओं के समाधान करने का काम
करेगी।
भिखराम भगत ,
राजी - पड़हा देवान ,
ग्राम पो - घाघरा ,
जिला - गुमला (झारखण्ड )
अनमोल कड़ियाँ
लेखक का उद्देश्य :- अनमोल कड़ियां भाग-१ नामक पुस्तक लिखने का मेरा दो उद्देश्य है। प्रथम तो राजी-पडहा के द्वारा कुडुख भाषा में अद्दिधरम पोथा ( ग्रन्थ ) लिखा जा
रहा है जिसको समझने में आप सबो को कठिनाईयां न हो । इस पुस्तक के प्रथम भाग
में मैने अदिधरम की मौलिक बातों को बहत ही संक्षेप में लिखा हूँ ताकि ग्रन्थ प्रकाशित
होने के पहले ही आप सब अद्दिधरम के बारे कुछ बहुत जानकारी प्राप्त कर लेगे जिससे
आप सम्पुर्ण ग्रन्थ की बातो और मर्मो को सहज स्वाभाव से समझ सकेगें ।
द्वितीय इस पुस्तक के दसरे भाग में भजन ,गीत,कविता आदि है । राजी-पडहा।
की ओर से समाज के लोगों को निर्देश है कि सभी कोई कुडुख भाषा में ही
भजन गीत,कविता कहानी आदि लिख कर और राजी पडहा के पास भेज दें ताकि।
राजी-पडहा प्रकाशित कर सकें।
हमारी गीते अधिकतर सदान भाषा में है जो हमारा दुर्भाग्य ही है । अता :
आप सबों से निवेदन है कि आप सदान भाषा वाली गीतों को कुइख भाषा में उलथा करें।
इसका अर्थ यह नहीं कि सदान भाषा वाली गीतों को गावें ही नहीं और न जाने । समय।
और सही जगह में सदान गीतों को अवश्य गावें किसी को मना नहीं है किन्तु अपनी
भाषा और संस्कृति को समृद्धशैली बनाने के लिए हम सबों को अत्याधिक प्रयत्नशील
होना आवश्यक है।
इस पुस्तक को पढकर आप निश्चय ही कहेगें कि एक और राजी पडहा ।
देवान की भिखराम भगत कुडुख भाषा में ही गाने और लिखने के लिये कहते है फिर
इस पुस्तक में अपने ही सदान भाषा वाली गीतों को क्यो व्यवहार किया है आप लोगों
का यह बात अवश्य सत्य है पर मैं सदान गीतो का विषय वस्तु को स्पष्ट करने के ।
लिए ही उदाहरण के रूप में लाया हूँ।
- मैं पूर्ण आशा करता हूँ कि आप सभो कुडुख भाषा में भजन,
गीत नाटक कविता कहानी आदि लिखकर राजी - पड़हा के पास भेजें जो राजी-पड़हा।
की अनमोल कड़ियाँ ही होगी ।
राजी पड़हा की ओर से आप सबों को सख्त निर्देश है कि आप सब नीचे
लिखे नियमों का अवश्य पालन करें ।
(१) हम परानी-नई अच्छी गीतों का संग्रह हर हालत में कर के और राजी-पडहा के नाम ।
प्रेषित करें।
(२)बुरी गीतों को कभी भी नहीं गावें । हमें नई गीतो को बचाना आवश्यक है पर असे
भावों से युत्त हों।
(३) गाने और नृत्य के समय दुसरे जाति के संगीत और नृत्य शैली से हमें परे रहना
अति आवश्यक है । बाजा और गीतों की ताल और लय में सामंजस्य होना अति ।
आवश्यक है । नृत्य में मांदर नगाड़ा के साथ-साथ घट,ढ़ेचका होना अति
आवश्यक है।
कुडुख समाज में नर-नरियों का सामूहिक रूप से नृत्य होती है किन्तु लड़कियों का।
कत्तार अलग और लड़कों का दल अलग परम्परा के अनुसार होना अति आवश्रक
है । लड़कियों के कत्तार में लड़कों का जोराना सख्त वर्जित है । दोनों दलों का भेष
-भूषा अलग -अलग पर एक समान होना चाहिए । ।
कुडुख जाति को सख मना है कि पड़हा सस्था के बिना आदेश के कहीं भी बाहर।
नृत्य करने नहीं जाना है । क्योंकि जहाँ तहाँ नृत्य करके कुडुख नृत्य को तमाशमीन
बनाकर मटियामेट नहीं करें।
गाँव-घर अखड़ा में १० बजे रात से अधिक रात तक नृत्य नहीं करें । किन्तु परब
-त्योहार में रात भर नृत्य कर सकते है । किसी भी रात या परब - त्योहार में रात
को एक गाँव से दूसरे गाँव नृत्य करने नहीं जाएँ ।
(७) राजी - पड़हा के तरफ से सख्ख अदेश है कि किसी भी घर दरवाजा पर या राजनैतिक
व्यत्तियों के स्वागत करने ,नृत्य दल नृत्य करने नहीं जाएगी । इसी प्रकार अच्छाई
-बुराई को जानकर ही नृत्य करें।
खास करके कुडुख जाति की संगीत और इतिहास ही अनमोल कड़ियाँ है ।
यही तो हमारे पूर्वजों ने हमारे लिये पुँजी के रूप में दिया है जिसको रक्षा और
विकास करना हमारा फर्ज है।
आदिवासियों और सरना को मानने वाले तमाम जाति बन्धुओं के बीच १-राजी-
पडहा और २ - सरना संघर्ष अखड़ा नामक दो संस्थाएँ विद्धत गति से काम कर
रही है । १- राजी पड़हा धार्मिक और सामाजिक पर ही काम करेगी जब कि सरना।
संघर्ष अखड़ा के तमाम मानने वालों के समस्याओं के समाधान करने का काम
करेगी।
भिखराम भगत ,
राजी - पड़हा देवान ,
ग्राम पो - घाघरा ,
जिला - गुमला (झारखण्ड )